वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय, Vasudev Sharan Agrawal ka Jivan Parichay।

जीवन परिचय: वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म सन् 1904 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद में स्थित खेड़ा नामक ग्राम के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। सन् 1929 में इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम० ए० किया। इसके बाद मथुरा के पुरातत्त्व संग्रहालय के अध्यक्ष बने। इनके पिता का नाम विष्णु अग्रवाल था।

अग्रवाल जी ने अपनी पढ़ाई पूरी की और सन् 1941 में पी-एच० डी० तथा 1946 में डी. एल. इ. डी. (Diploma in Elementary Education) की उपाधियाँ प्राप्त की। और सन् 1946 से 1951 तक सेन्ट्रल एशियन एण्टिक्विटीज म्यूजियम के सुपरिण्टेण्डेण्ट और भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष पद पर भी कार्य किया।

अग्रवाल जी सन् 1951 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कालेज ऑफ इण्डोलॉजी (भारती महाविद्यालय) में प्रोफेसर नियुक्त किए गए। और बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय में एक विशेष कक्षा को पढ़ाने के लिए भी चुने गये। यह कक्षा पाणिनी नामक एक प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में थी।

अग्रवाल जी भारतीय मुद्रा परिषद् (नागपुर), भारतीय संग्रहालय परिषद् (पटना) तथा आल इण्डिया ओरियण्टल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन बम्बई (मुम्बई) आदि संस्थाओं के सभापति पद पर भी रह चुके है। अग्रवाल जी ने पाली, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और पुरातत्त्व का गहन अध्ययन किया था। और 27 जुलाई सन् 1967 में हिन्दी के इस साहित्यकार का निधन हो गया।

डॉ. अग्रवाल को भारतीय संस्कृति, और जमीन में दबी पुरानी चीजों के इतिहास के बारे में बहुत पहले से बहुत कुछ पता था। उन्होंने बहुत सारे शोध किए और अच्छे निबंध लिखकर लोगों को यह समझाया कि भारतीय संस्कृति कितनी महत्वपूर्ण है।

निबंध लिखने के अलावा, उन्होंने संस्कृत, पाली और प्राकृत भाषाओं में लिखी कई पुस्तकों पर भी काम किया। चूँकि वे भारतीय साहित्य और संस्कृत के बहुत जानकार थे, इसलिए उन्हें देश के सबसे महत्वपूर्ण विद्वानों में से एक माना जाता है।

वासुदेव शरण अग्रवाल का रचनात्मक परिचय।

वासुदेव शरण अग्रवाल इसलिए प्रसिद्ध हुए क्योंकि उन्होंने संस्कृति के बारे में कई पुराने हिंदी ग्रंथों का अध्ययन किया और उनकी व्याख्या की। उन्होंने संस्कृत, हिंदी और अवधी भाषाओं के कई प्राचीन ग्रंथों का लेखन भी किया।

अग्रवाल जी ने अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया और “पाणिनिकालि भारतवर्ष” नामक एक विशेष पुस्तक लिखी जो भारत के इतिहास और संस्कृति के अध्ययन के बारे में है। । जिसमें उन्होंने पाणिनि के अष्टाध्यायी के माध्यम से भारत की संस्कृति एवं जीवनदर्शन पर प्रकाश डाला है। 

उन्होंने भाषा एवं साहित्य के सहारे भारत का पुन: अनुसंधान किया है और उसमें वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण विधि का प्रयोग किया है।

इस पुस्तक में एक विश्वकोश की तरह बहुत सारी जानकारी है, और इसका अध्ययन करना आसान है क्योंकि इसमें एक सूचकांक है।

इनकी भाषा विषयानुकूल, प्रौढ़ तथा परिमार्जित है। इन्होंने मुख्यत: इतिहास, पुराण, धर्म और संस्कृति के क्षेत्रों से शब्द चयन किया है। और शब्दो को उनके मूल अर्थ में प्रयुक्त किया है।

इनकी भाषा में देशज शब्दों, मुहावरों, कहावतों का भी प्रयोग किया गया है। इनकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का अभाव दिखाई पड़ता है। इनकी शैली पर इनकी गंभीर व्यक्तित्व की छाप है।

वासुदेव शरण अग्रवाल की कृतियां–

इन्होंने वैदिक साहित्य दर्शन पुराण और महाभारत पर अनेक गवेषणात्मक लेख लिखे है, जायसी कृत ‘पद्मावत’ की सजीवनी की व्याख्या और बाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ का संस्कृत अध्ययन प्रस्तुत करके इन्होंने हिंदी साहित्य को गौरवान्वित किया है। इसके अतिरिक्त इनकी लिखी और संपादित पुस्तके निम्न है–उरूज्योति, कला और संस्कृत, भारतसावित्री, कादंबरी, पोद्दार अभिनंदन ग्रंथ इत्यादि

निबंध–संग्रह

  • भारत की एकता 
  • कल्पलता 
  • कल्पबृक्ष
  • पृथ्वी पुत्र
  • मातृ भूमि
  • वाग्बधारा
  • वेद विद्या
  • पूर्ण ज्योति 
  • कला और संस्कृति

ऐतिहासिक व पौराणिक निबंध

  • महापुरुष श्रीकृष्ण 
  • महर्षि वाल्मीकि और मनु

आलोचना-

  • पद्मावत की संजीविनी व्याख्या हर्ष चरित का संस्कृति अध्यन।

शोध ग्रन्थ

  • नविन कालीन भारत

संपादन एवं अनुवाद

  • पोद्दार अभिनन्दन ग्रन्थ – 1953
  • “हिन्दू सभ्यता – 1955 (राधाकुमुद मुखर्जी की अंग्रेजी पुस्तक का अनुवाद)
  • शृंगारहाट (डाॅ• मोतीचन्द्र के साथ)

यदि आप किसी प्रसिद्ध हिंदी लेखक की कृतियों का सर्वश्रेष्ठ संग्रह पढ़ना चाहते हैं, तो साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा प्रकाशित “वासुदेव शरण अग्रवाल रचना संचयन” नामक पुस्तक एक अच्छा विकल्प है।

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