मनोविज्ञान के 7 प्रमुख सिद्धांत, Theory of Psychology in Hindi

मनोवैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए, 7 प्रमुख सिद्धांत

मनोविज्ञान और इसके सिद्धांत में बहुत सारे विचार हैं जो हमें चीजों को समझने में मदद करते हैं जैसे कि लोग कैसे कार्य करते हैं, सोचते हैं और महसूस करते हैं।

इन विचारों का स्पष्टीकरण करके मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो द्वारा यह पता लगाने की कोशिश करते है कि, लोग ऐसा क्यों करते हैं, वे जो भी सोचते है, वे जो महसूस करते हैं और जिस तरह से कार्य करते हैं, क्यों। इन्हीं चीजों को व्यवस्थित ढंग से समझने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए कुछ प्रमुख सिद्धांत दिए गए हैं–

सिगमंड फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत, Psychoanalytic Theory

मानव मन और व्यक्तित्व के अध्ययन पर आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार, व्यक्तित्व की संरचना तीन मुख्य भागों में बांटी गई है।

  • पहचान (Id): यह जन्मजात होता है और सुख के सिद्धांत पर आधारित होता है। इसमें व्यक्ति हमेशा वही करता है जिसमें उसे तुरंत खुशी मिलती हो। यह सब उसकी प्राकृतिक इच्छाओं और चीजों को चाहने के बारे में है। प्राकृतिक इच्छाएँ वे चीज़ें हैं जिसे लोग अंदर से महसूस करते है या उनकी ओर आकर्षित होते हैं, और करने में आनंद लेते हैं। जैसे: पसंदीदा गाने सुनना या अपने पसंदीदा खेल को खेलना। ये चीजें प्राकृतिक इच्छाओं में शामिल है।
  • अहम् (Ego): अहंकार वह चीज है जिसके द्वारा लोग सोचते हैं और अपने विचारों, भावनाओं और बुद्धिमत्ता के आधार पर फैसले लेते हैं। अहंकार एक मालिक की तरह है जो नियमों का पालन करता है और जिस तरह से समझ में आता है हमें खुश करने की कोशिश करता है। और हमें वह बनाने में मदद करता है, जो हम वास्तव में हैं।
  • पराअहम् (Super-Ego): यह व्यक्तित्व का नैतिक और आदर्शात्मक भाग होता है, जो हमारे अंदर एक छोटी सी आवाज की तरह है जो हमें समाज में अच्छे या बुरे के आधार पर सही और गलत का पता लगाने में मदद करता है। और सब कुछ संतुलन में रखता है।

फ्रायड ने यह भी बताया कि मानव व्यवहार की दो मूल प्रवृत्तियां होती हैं।

  • जिजीविषा (Eros): इरोस एक मजबूत एहसास की तरह है जो हमें जीवित रहने और अपना ख्याल रखने में मदद करता है क्योंकि हम खुद से प्यार करते हैं।
  • मुमूर्षा (Thanatos): थानाटोस वह नाम है जो फ्रायड ने इस विचार को दिया था कि हर किसी में मृत्यु की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, और उनका मानना था कि यही कारण है कि लोग कुछ करते हैं।

फ्रायड के सिद्धांत में मन के तीन स्तर भी बताए गए हैं–

  • चेतन मन (Conscious Mind): जो वर्तमान से संबंधित होता है। जिसके बारे में आप अभी सोच रहे हैं या अभी जो आप कर रहे हैं।
  • अर्द्ध चेतन मन (Preconscious Mind): कभी-कभी, जब आप कुछ याद करते हैं लेकिन उसके बारे में ठीक से सोच नहीं पाते हैं, तो आपको उसे याद करने से पहले अपने ध्यान को केंद्रित करने और गहराई से सोचने की आवश्यकता हो सकती है।
  • अचेतन मन (Unconscious Mind): अचेतन मन मस्तिष्क में एक छिपे हुए हिस्से की तरह है जहाँ हमारा दिमाग दुखद या डरावने विचार और भावनाएँ रखता हैं जिनके बारे में हम सोचना नहीं चाहते हैं।

यदि इनके बारे में और गहराई से समझना चाहते है, तो इस आर्टिकल को पढ़ सकते है। दिमाग क्या है, और कैसे काम करता है | What is Mind in Hindi.

फ्रायड के इन सिद्धांत का मनोविज्ञान पर गहरा प्रभाव पड़ा, और यह आज भी व्यक्तित्व और मानसिक विकास के अध्ययन में महत्वपूर्ण है। यदि इनके बारे में और गहराई से समझना चाहते है, तो इस आर्टिकल को पढें।

Principles of psychology

प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत, Trial and Error Theory

Trial and Error Theory– एडवर्ड थार्नडाइक द्वारा दिया गया एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है, जिसमें एडवर्ड थार्नडाइक ने यह समझने का एक तरीका निकाला है कि लोग अपने दिमाग में चीजें कैसे सीखते हैं। 

उन्होंने कहा कि जब हम कुछ करने की कोशिश करते हैं, जैसे किसी समस्या को हल करना या कुछ पता लगाना, तो हम रास्ते में गलतियाँ कर सकते हैं। लेकिन हर बार जब हम कोई गलती करते हैं, तो हम उससे सीखते हैं और सही उत्तर खोजने के करीब पहुंच जाते हैं। इसलिए, सीखना छोटे कदम उठाने और प्रत्येक प्रयास के साथ बेहतर होने जैसा है।

इस सिद्धांत का प्रमुख उदाहरण है, थार्नडाइक द्वारा किया गया एक प्रयोग– जिसमें उन्होंने एक भूखी बिल्ली को एक पिंजरे में बंद किया और पिंजरे के बाहर मछली का टुकड़ा रखा। बिल्ली ने पिंजरे से बाहर निकलने के लिए विभिन्न प्रयास किए और अंततः एक लीवर को दबाकर पिंजरे को खोलना सीख लिया।

इस सिद्धांत के अनुसार, सीखने की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:

  • अभिप्रेरणा (Motivation): जो आपको अपने लक्ष्य और उद्देश्य तक पहुंचने या जो कुछ आप करना चाहते हैं उसे पूरा करने में मदद करती है।
  • बाधा (Obstacle): नई चीजें सीखने के लिए हमें चुनौतियों (बाधा) का सामना करना पड़ता है जिसे पार पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
  • निरर्थक अनुक्रियाएं (Random Responses): कोई भी इंसान हो या जानवर कभी कभी वे अलग अलग तरीकों से प्रतिक्रिया करते है। तो वे ऐसी बातें करते है, जिनका वास्तव में कोई मतलब नहीं होता या उनके पीछे कोई कारण नहीं होता।
  • आकस्मिक सफलता (Accidental Success): कभी-कभी, जब लोग कुछ करने की कोशिश करते हैं, तो वे बिना योजना बनाए या उम्मीद किए सफल हो जाते हैं। यह दुर्घटना या भाग्य से होता है।
  • चयन (Selection): हमारा शरीर हमारे आस-पास की चीज़ों पर कैसे प्रतिक्रिया करता है, जैसे जब हम मुस्कुराते हैं, जब हम कुछ मज़ेदार देखते हैं या जब हमें डर लगता है और हमारा दिल तेजी से धड़कता है तो हमारे शरीर द्वारा सफल अनुक्रियाओं का चयन किया जाता है और व्यर्थ अनुक्रियाएं छोड़ दी जाती हैं।
  • स्थिरता (Retention): प्रतिधारण का मतलब है कि जब आप कुछ सही करते हैं, तो आप उसे याद रखते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उसे दोबारा करते हैं।

शर्तीकरण का सिद्धांत, Conditioning Theory

Conditioning Theory– कंडीशनिंग का सिद्धांत, जो इवान पावलोव द्वारा बनाया गया था, यह सिद्धांत इस बारे में है कि जीवित चीजें कैसे कुछ नया करना सीखती हैं और जीवन में जब कुछ घटित होता है तो वह हमें एक निश्चित तरीके से प्रतिक्रिया करने पर मजबूर कर देती है।

उदाहरण के लिए पावलोव के प्रसिद्ध प्रयोग में, उन्होंने एक कुत्ते को भोजन दिखाया, जिसमें कुत्ते के मुंह से लार टपकने लगी, जो कि एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। फिर उन्होंने भोजन दिखाने के साथ-साथ एक घंटी बजाई। कुछ समय बाद, केवल घंटी बजाने पर भी कुत्ते के मुंह से लार टपकने लगी, भले ही भोजन न दिखाया गया हो। इस प्रकार, कुत्ते ने घंटी की आवाज को भोजन के साथ जोड़ दिया और घंटी की आवाज सुनकर लार टपकाने लगा, जो कि एक सीखी हुई प्रतिक्रिया है।

इस सिद्धांत को क्लासिकल कंडीशनिंग (Classical Conditioning) या प्रतिवादी अनुबंधन (Respondent Conditioning) के नाम से भी जाना जाता है, और यह मनोविज्ञान में सीखने की प्रक्रियाओं को समझने के लिए एक मौलिक सिद्धांत है।

Humen psychology

संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत, Cognitive Development Theory

Cognitive Development Theory– मानव बुद्धि की प्रकृति और उसके विकास से संबंधित एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। जिसे पियाजे द्वारा दिया गया था। पियाजे का मानना था कि व्यक्ति के विकास में उसका बचपन एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। उनके विचार के अनुसार, लोग इस बात को लेकर बहुत सावधान रहे हैं कि बच्चे अपनी बुद्धिमत्ता कैसे विकसित करें।

पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है:

  • संवेदी पेशीय अवस्था (Sensory Motor Stage): जन्म से लेकर 2 वर्ष तक, जब बच्चे पैदा होते हैं, तो वे अपनी इंद्रियों जैसे छूने, देखने, सुनने और अपने शरीर को हिलाने का उपयोग करके दुनिया के बारे में सीखते हैं। इसे सेंसरी मोटर स्टेज कहा जाता है और यह उनके लगभग 2 साल का होने तक रहता है।
  • पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational Stage): 2 से 7 वर्ष की उम्र में, प्री-ऑपरेशनल चरण के दौरान, बच्चे खेलकर, दूसरों की नकल करके, चित्र बनाकर और भाषा का उपयोग करके सीखते हैं।
  • मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage): 7 से 12 वर्ष की उम्र में, बच्चे अपनी सोच और वस्तुओं के संबंधों को समझने लगते हैं।
  • अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational Stage): जब बच्चे 12 वर्ष से बड़े होते हैं, तो वे अधिक उन्नत तरीकों से सोचना शुरू कर देते हैं। वे उन चीजों की कल्पना कर सकते हैं जो वास्तविक नहीं हैं और तर्क का उपयोग करके यह पता लगा सकते हैं कि चीजें कैसे काम करती हैं।

बच्चे कैसे सीखते हैं और बढ़ते हैं, इस बारे में पियाजे के विचार शिक्षकों और मनोवैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं। लोग अभी भी उनके विचारों का उपयोग यह समझने के लिए करते हैं कि बच्चे कैसे विकसित होते हैं और नई चीजें सीखते हैं।

सामाजिक सीखने का सिद्धांत, Social Learning Theory

Social Learning Theory– यह बंदूरा का प्रसिद्ध सिद्धांत है, जो यह बताता है कि लोग अपने आस-पास के वातावरण और दूसरों के व्यवहार को देखकर सीखते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, एक व्यक्ति न केवल अपने अनुभव से सिखता है, बल्कि दूसरे लोग क्या करते हैं यह देखकर भी सीखता हैं।

बंदुरा के प्रयोग में, कुछ बच्चों ने एक इंसान को एक गुड़िया के साथ बुरा व्यवहार करते हुए देखा और फिर बाद में उन बच्चो ने भी उस गुड़िया के साथ बुरा व्यवहार किया। इससे पता चला कि बच्चे सिर्फ अपने अनुभव से नहीं, बल्कि दूसरे लोगों के व्यवहार को देखकर भी सिखते हैं।

बंदूरा के अनुसार, सीखने की प्रक्रिया में तीन मुख्य कारक होते हैं:

  • बाहरी वातावरण (External Environment): व्यक्ति के आस-पास का वातावरण और स्थान उसके सीखने पर प्रभाव डालता है।
  • संज्ञानात्मक और आंतरिक घटनाएं (Cognitive and Internal Events): व्यक्ति की सोच और समझ भी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। मतलब जब कोई व्यक्ति कुछ सीखता है तो उसके बारे में उसकी सोच और समझ बड़ी भूमिका निभाती है।
  • व्यवहार (Behavior): व्यक्ति का अपना व्यवहार और उसके परिणाम भी सीखने में महत्वपूर्ण होते हैं। कोई व्यक्ति किस प्रकार कार्य करता है और उसके कार्यों के परिणामस्वरूप क्या होता है, दोनों ही सीखने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

इस सिद्धांत का महत्व यह है कि यह व्यवहारवादी और संज्ञानात्मक सीखने के सिद्धांतों के बीच एक पुल का काम करता है, क्योंकि इसमें यह भी शामिल है कि आप कितनी अच्छी तरह ध्यान दे सकते हैं, चीजों को याद रख सकते हैं और खुद को प्रेरित कर सकते हैं।

Pshychology

मानवतावादी सिद्धांत, Humanistic Theory

Humanistic Theory– जिसे अब्राहम मास्लो और कार्ल रोजर्स ने विकसित किया, मनोविज्ञान एक दृष्टिकोण के रूप में मानव की सकारात्मक क्षमताओं और व्यक्तिगत विकास पर जोर देता है। यह सिद्धांत कहता है कि लोगों में चुनाव करने और अपने अनुभवों से सीखने की शक्ति होती है। इसका यह भी मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति में अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने और सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनने की क्षमता होती है।

अब्राहम मास्लो ने यह दिखाने के लिए (Maslow’s Hierarchy of Needs) नामक एक सूची बनाई, जिसमें शारीरिक जरूरतों से लेकर आत्म-साक्षात्कार तक की जरूरतें शामिल हैं।

मास्लो का मानना था कि जब व्यक्ति की निचले स्तर की जरूरतें पूरी हो जाती हैं, तब वह उच्च स्तर की जरूरतों की ओर बढ़ता है।

 कार्ल रोजर्स ने व्यक्ति-केंद्रित चिकित्सा (Person-Centered Therapy) का प्रस्ताव रखा, जिसमें चिकित्सक और रोगी के बीच संबंध पर जोर दिया गया है। रोजर्स के अनुसार, हर व्यक्ति के अंदर आत्म-विकास की प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है, और अगर सही माहौल प्रदान किया जाए, तो व्यक्ति अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुंच सकता है।

मानवतावादी सिद्धांत व्यक्ति की आंतरिक दुनिया और उसके अनुभवों को महत्व देता है, इसका मानना है कि हर कोई खास है और उसकी अपनी व्यक्तिगति यात्रा है। इसका उद्देश्य व्यक्ति को अधिक स्वतंत्र, रचनात्मक और संतुष्ट जीवन जीने में सहायता करना है।

व्यवहारवादी सिद्धांत, Behaviorist Theory

Behaviorist Theory– इस सिद्धांत की शुरुआत जे.बी. वाटसन ने 1913 में की थी, और इसका मुख्य विचार यह है कि हम जो करते हैं वह हमारे साथ घटित होने वाली किसी चीज़ की प्रतिक्रिया है। मतलब हमारे कार्य हमारे आस-पास की चीज़ों से प्रभावित होते हैं।

व्यवहारवादी सिद्धांत को बिहेवियरिज़म भी कहा जाता है, जो कहता है कि आपका व्यवहार, यानी आप कैसे बर्ताव करते हैं, यह सीखे हुए अनुभवों से आता है। इसका मतलब है कि जब आप छोटे होते हैं, तो आप अपने आस-पास की चीजों से सीखते हैं कि किसी भी स्थिति में कैसे रिएक्ट करना है।

उदाहरण के लिए, अगर आपको चॉकलेट खाने पर हमेशा तारीफ मिलती है, तो आप सीख जाएंगे कि चॉकलेट खाना अच्छा है और आप उसे खाना पसंद करेंगे। इसी तरह, अगर आपको गलती करने पर डांट पड़ती है, तो आप सीख जाएंगे कि वह गलती नहीं करनी चाहिए।

इस सिद्धांत के अनुसार, आप जो भी करते हैं, वह आपके पर्यावरण और अनुभवों के जवाब में होता है। इसलिए, अगर आप चाहें तो नई चीजें सीखकर अपने व्यवहार को बदल सकते हैं।

 

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