जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, Jaishankar Prasad Jivan Parichay।

जीवन परिचय– जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी, 1890 में काशी के गोवर्धनसराय मुंधनी साहू नामक एक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबू देवीप्रसाद था। जो दान देने के साथ-साथ कलाकारों का आदर करने के लिये प्रसिद्ध थे। 

प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई थी, परंतु यह शिक्षा अल्पकालिक थी। जो छठे दर्जे में वहाँ शिक्षा आरंभ हुई थी। और सातवें दर्जे तक ही वे वहाँ पढ़ पाये। क्योंकि छोटी अवस्था में ही इनके पिता तथा बड़े भाई का देहान्त हो जाने के कारण उन्हें स्कूल जाना बंद करना पड़ा। और वे घर के व्यापार को संभालने लगे। 

व्यापार को संभालते हुए इन्होंने अपने आप पर विशेष ध्यान रखा। और घर पर ही उनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, फारसी का गहन अध्ययन किया। प्रसाद जी के प्रारंभिक शिक्षक श्री मोहिनीलाल गुप्त थे। वे कवि थे और उनका उपनाम ‘रसमय सिद्ध’ था।

प्रसाद जी एक विशेष प्रतिभा वाले अद्भुत लेखक थे। क्योंकि इन्होंने तब भी सुंदर कहानियाँ लिखीं, जब उन्हें परिवार के सदस्यों को खोने, पर्याप्त धन न होने और अपनी पत्नी से दूर रहने जैसे कठिन समय का सामना करना पड़ा। 

इनकी कहानियाँ हिन्दी लेखन जगत के लिए विशेष उपहार की तरह थीं। 14 जनवरी, 1937 को उनके बीमार शरीर ने काम करना बंद कर दिया और उस समय का अंत हो गया जब उन्होंने हिंदी में महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं।

प्रसाद जी हमेशा लोगों के साथ दयालुता से पेश आते थे और उनकी भावनाओं की परवाह करते थे। वह लोगों को अंदर से खुश और शांतिपूर्ण महसूस कराने के लिए जाने जाते थे। वह जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने का कोई अच्छा और दीर्घकालिक रास्ता खोजना चाहता थे। जो लंबे समय तक चले और दूसरों द्वारा सम्मान किया जाए।

प्रसाद जी के विचार, शब्द और कार्य सभी मेल खाते थे, जो यह दर्शाता है कि वह वास्तव में एक अच्छे इंसान थे। क्योंकि आप जो चाहते हैं, जो आप जानते हैं और जो आप करते हैं उसके साथ तालमेल बिठाना ही एक अच्छा इंसान बनना है।

भारतीय संस्कृति जिस तरह से ब्रेक लेने के साथ हमारी प्राकृतिक प्रवृत्ति को जोड़ती है वह बहुत खास है और प्रसाद जी ने ‘कामायनी’ के माध्यम से इस संदेश को दुनिया में सभी के साथ साझा किया। इस तरह प्रसाद जी अपने काम करने के तरीके में बहुत दयालु और देखभाल करने वाले व्यक्ति रहे हैं। और इन्हीं बातों को वो अपने किताब में दर्शाते है, जैसे–

‘चित्राधार’ कहानी में व्यक्ति को प्रकृति सुंदर और अच्छी लगती है। इसी तरह ‘प्रेम पथिक’ कहानी में व्यक्ति जब अपने चारों ओर प्रकृति को देखता है तो उसे इस बात में दिलचस्पी होने लगती है कि लोग कितने अच्छे हो सकते हैं। उन्होंने अपनी कविताएं बहुत ही मधुर और सुंदर ढंग से लिखी है। चूँकि, उन्हें स्वाभाविक रूप से मीठी चीज़ें पसंद हैं, वह उन रहस्यमय भावनाओं के बारे में भी लिखते है जो चीज़ों के संयोजन और पृथक्करण से उत्पन्न होती हैं। जैसे–

‘आँसू’ प्रसाद जी की एक उत्कृष्ट, गंभीर, विशुद्ध मानवीय विरह कविता है, जो प्रेम के स्वर्गीय रूप की छाप छोड़ती है, यही कारण है कि कुछ लोग इसे आध्यात्मिक विरह की कविता मानने की आशा करते हैं वैसे ही–

‘कामायनी’ प्रसाद जी के काव्य की पूर्णता और उनकी काव्य-साधना की पूर्ण परिपक्वता है। मनु और श्रद्धा के नाम पर प्रसाद जी ने स्त्री-पुरुष के शाश्वत स्वरूप तथा मूल मानवीय भावनाओं का काव्यात्मक चित्रण किया है।

काव्य, दर्शन और मनोविज्ञान की त्रिमूर्ति “कामायनी” निश्चित रूप से आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक रचना है। प्रसाद जी छायावादी कवि थे। प्रेम और सौन्दर्य उनकी कविताओं के मुख्य विषय हैं। और मानवीय करुणा ही उनकी आत्मा है। 

प्रसाद जी प्रकृति के साथ एक मजबूत और विशेष जुड़ाव महसूस करते थे और मानते थे कि, इसके पीछे एक शक्तिशाली शक्ति है। प्रसाद जी का रहस्य और ज्ञान प्रकृति को समझने का एक विशेष तरीका जैसा है जो आत्माओं या भूतों के बारे में नहीं है। यह मजबूत भावनाओं को महसूस करने और चीजों में सुंदरता ढूंढने के बारे में है। असद उन कविताओं में मजबूत भावनाएं, दर्द और एक बहुत ही रचनात्मक कल्पनाएं भी शामिल है।

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय, Jaishankar Prasad ka Sahityik Parichay।

साहित्यिक परिचय– जयशंकर प्रसाद प्रसिद्ध और सम्मानित हो गए क्योंकि वे लिखने और कला बनाने में वास्तव में अच्छे थे। जयशंकर प्रसाद ने अपनी लेखनी से भारतीय साहित्य को नया आयाम दिया। और उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय भावनाएं, भक्ति, नारी सम्मान, और स्वतंत्रता प्रेम के महत्वपूर्ण मुद्दे पर जोर दिया गया।

प्रसाद जी हिन्दी के कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक थे। और वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उन्होंने हिंदी कविता में छायावाद नामक लेखन शैली का निर्माण किया। जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को विस्तृत रूप से देखन में मदद करती थी। और कामायनी नामक प्रसिद्ध काव्यरचना से प्रेरित थी। 

इस कविता में जीवन के छोटे-बड़े दोनों पक्षों को दिखाने का मौका मिला, और जब वह कामायनी तक पहुंची तो एक सशक्त और प्रेरक कविता के रूप में जानी जाने लगी। और कई कवियों ने इस शैली का उपयोग अपनी कविताओं में करना शुरू कर दिया। 

बाद में, महत्वपूर्ण लोग जो मूल रूप से नई और विभिन्न प्रकार की कविता को पसंद नहीं करते थे, उन्हें एहसास हुआ कि यह वास्तव में कितनी अच्छी थी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि ‘खड़ीबोली’ हिन्दी काव्य की निर्विवाद भाषा बन गयी। 

उन्होंने विभिन्न भावनाओं के बारे में महत्वपूर्ण कविताएँ लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएँ प्रेम, जीवन, मृत्यु और नई शुरुआत के बारे में हैं। उनकी प्रसिद्ध काव्यरचनाओं में ‘कामायनी’, ‘मधुशाला’, ‘अमृत-धारा’ और ‘आगामी’ शामिल हैं। तथा नाटकों में ‘स्कंदगुप्त’ और ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ मशहूर हैं। इन नाटकों में वे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को महानता के साथ दर्शाते हैं और न्याय, धर्म, और देशप्रेम के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

प्रसाद जी ने ऐसी किताबें लिखीं जो आज भी हिंदी साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण हैं और इन किताबों से प्यार करने वाले लोगों को उन पर गर्व है। उन्हें अपनी इस योगदान के लिए कई साहित्यिक पुरस्कार मिले, जिनमें सहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्मभूषण शामिल हैं।

उनकी कविताएँ विशेष हैं क्योंकि उनमें भावनाओं, स्वादों और वर्तमान क्षण में होने का मिश्रण है। इसीलिए उन्हें हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक महान् कवि माना जाता है।

जयशंकर प्रसाद की रचनाएं–

जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में छायावाद की नींव रखी और उन्हें छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक माना जाता है, उनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

काव्य–रचना–

  • कामायनी
  • आँसू
  • लहर
  • झरना 
  • प्रेम-पथिक
  • चित्राधार
  • कानन कुसुम
  • करुणालय

उपन्यास–

  • कंकाल
  • तितली 
  • इरावती (अपूर्ण)।

कहानी-संग्रह–

  • पंचायत
  • इन्द्रजाल
  • आँधी
  • छाया
  • देवदासी
  • प्रतिध्वनि
  • आकाशदीप

नाटक, एकांकी एवं निबंध–

  • एक घूँट
  • चन्द्रगुप्त
  • स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य
  • अजातशत्रु
  • ध्रुवस्वामिनी
  • जनमेजय का नाग-यज्ञ
  • कामना
  • अग्निमित्र (अपूर्ण)

निबन्ध–

  • काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध (भारती भण्डार, लीडर प्रेस, इलाहाबाद से प्रकाशित)।

पुरस्कार एवं सम्मान–

  • मंगलाप्रसाद पारितोषिक ‘कामायनी’।
  • सहित्य अकादमी पुरस्कार।
  • भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, और पद्मभूषण।

Others Intro