ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन (Climate change), और प्रदूषण ये चारों शब्द – एक ही बड़े मुद्दे के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं, जो कि पर्यावरणीय परिवर्तन है। ये सभी आपस में संबंधित हैं लेकिन प्रत्येक का अपना अलग अर्थ और प्रभाव क्षेत्र है।
- ग्लोबल वार्मिंग– विशेष रूप से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि को संदर्भित करता है।
- जलवायु परिवर्तन (Climate change)– इस वृद्धि के कारण होने वाले व्यापक मौसम संबंधी परिवर्तनों को बताते हैं।
- प्रदूषण– वातावरण में हानिकारक पदार्थों के मिश्रण को कहते हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज को बढ़ावा देते हैं।
इस प्रकार, ये सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक साथ मिलकर पर्यावरणीय परिवर्तन की व्यापक तस्वीर को प्रस्तुत करते हैं। और किसी न किसी तरह पृथ्वी पर रहने वाले जीव और जगत को प्रभावित करते है।
ग्लोबल वार्मिंग क्या है? What is Global Warming!
ग्लोबल वार्मिंग का मतलब है, धीरे-धीरे पृथ्वी का गर्म होना। जिसका मुख्य कारण है ग्रीनहाउस गैसों का वातावरण में बढ़ना, जो मानवीय गतिविधियों जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होते है।
वातावरण में मौजूद कुछ गैसें होती हैं जो सूरज की गर्मी को रोक लेती हैं और पृथ्वी को गर्म कर देती हैं। यह गर्मी ज्यादा होने से पृथ्वी पर बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं, जैसे ग्लेशियर का पिघलना, समुद्र का स्तर बढ़ना, और मौसम में बदलाव होना। इन गैसों में मुख्यता–
कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) एवं अन्य गैसें शामिल है।
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂): यह गैस जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल, और गैस के जलने से बनती है। वाहनों, थर्मल पावर प्लांट्स, और विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं से भी CO₂ उत्सर्जित होता है।
- मीथेन (CH₄): यह गैस कृषि गतिविधियों, जैसे पशुधन से आती है, और जैविक कचरे के सड़ने से भी बनती है।
- नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O): यह गैस उर्वरकों के उपयोग और विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होती है।
- फ्लोरीनेटेड गैसें: ये औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग की जाने वाली कृत्रिम गैसें हैं, जैसे रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर्स में।
ये गैसें वातावरण में जमा होकर सूरज की गर्मी को फंसा लेती हैं और पृथ्वी को गर्म कर देती हैं। इस प्रक्रिया को ग्रीनहाउस प्रभाव कहते हैं। जब ये गैसें प्राकृतिक संतुलन से अधिक हो जाती हैं, तो ये ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती हैं।
जलवायु परिवर्तन क्या है? What is Climate Change!
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जो लंबे समय में या कुछ सालों में किसी स्थान के औसत मौसम में आए बदलावों को दर्शाता है।
यह बदलाव दो मुख्य कारणों से हो सकते है, पहला है, प्राकृतिक और दूसरा, मानवीय गतिविधियां।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का मतलब है, किसी स्थान या पूरे ग्रह के तापमान और मौसम के पैटर्न में लंबे समय तक बदलाव होना। यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है, जैसे सूर्य की गतिविधियों में परिवर्तन या बड़े ज्वालामुखी के विस्फोट। और यह मानवीय भी हो सकता है, जिसमें मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे फॉसिल ईंधन को जलाने के कारण।
इसके अलावा, मानव गतिविधियों में वनों की कटाई, जमीन के उपयोग में बदलाव, औद्योगिक और कृषि प्रक्रियाओं, और कचरे के निर्माण से भी क्लाइमेट चेंज को बढ़ावा मिलता हैं।
कुछ लोगों को (Climate Change) एक दूर की बात लगती हैं, जिसका उन पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता, या जिसका समाधान करने के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं। लेकिन उन्हे ये नहीं मालूम जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बहुत ही गंभीर और विशाल हैं। ये प्रभाव उनके स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, जल संसाधन, जैव विविधता, और आजीविका पर असर डालते हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के दो प्रमुख कारण हैं, प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियां।
(1) प्राकृतिक कारण में शामिल हैं–
- सूर्य की गतिविधि में परिवर्तन, जो धरती को अधिक या कम गर्म करते हैं।
- ज्वालामुखी विस्फोट, जो वायु में राख और गैस छोड़ते हैं, जो धूप की किरणों को अवशोषित या प्रतिबिंबित करते हैं।
- धरती के अक्ष का कोण और धरती के चक्कर की गति में बदलाव, जो धरती के अलग-अलग हिस्सों को अधिक या कम धूप प्राप्त करते हैं।
(2) मानवीय गतिविधियों में शामिल हैं–
- फॉसिल ईंधन का उपयोग, जो कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को वायु में छोड़ता है, जो धरती की गर्मी को फांसते हैं।
- वनों की कटाई, जो कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक संक्रामको को कम करती है, और जमीन को अधिक गर्म होने देती है।
- कृषि और पशुपालन, जो मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य गैसों का उत्सर्जन करते हैं, और जमीन की उर्वरता को कम करते हैं।
- औद्योगिक और घरेलू कचरा, जो वायु, जल और भूमि को प्रदूषित करता है, और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है।
वर्तमान में, जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है मानवीय गतिविधियां, जो जीवाश्म ईंधन को जलाते है, जिनसे ग्रीनहाउस गैसे निकलती है। जैसे, कार्बन डाइऑक्साइड
कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से धरती का तापमान बढ़ता है। और इस तापमान के बढ़ने से ग्लेशियर पिघलते है, ग्लेशियर के पिघलने से समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे लोगों को भयानक सूखा और बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है,
इन गैसों ने पिछले 150 साल में धरती के औसत तापमान को 1.1°C बढ़ाया है। कई देशों ने मिलकर एक प्रस्ताव बनाया है जिसका नाम ग्लोबल गोल 2025 है, इस प्रस्ताव का मकसद है कि 2025 तक वैश्विक औसत तापमान को 1.5°C से ऊपर नहीं जाने दिया जाए, जो पेरिस समझौते का लक्ष्य है। जिसे 2023 में अमेरिका, चीन, भारत, यूरोपीय संघ, ब्राजील, रूस, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और अन्य 40 से अधिक देशों ने समर्थन किया था।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि तापमान 1.5°C से ज्यादा बढ़ जाए, तो यह जलवायु परिवर्तन के घातक और अपरिवर्तनीय प्रभावों को जन्म देगा, जैसे बाढ़, सूखा, चक्रवात, वनों का नष्ट होना, जलवायु शरणार्थियों का बढ़ना, जैव विविधता का नुकसान, और खाद्य सुरक्षा का खतरा।
इस प्रस्ताव के बनाने के बावजूद भी 2023 में साल का सबसे ज्यादा तापमान दर्ज किया गया है। जिसका औसत वैश्विक तापमान 1.45°C अधिक मापा गया। 2023 में जून और दिसंबर के बीच हर महीने में तापमान बढ़ने के एक नए रिकॉर्ड दर्ज किए गए है जिसमें जुलाई और अगस्त महीने ने अब तक के सबसे गर्म महीने होने का रिकॉर्ड बनाया है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि फोसिल ईंधन जलाने से जारी कार्बन डाइऑक्साइड का 50% से अधिक हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग का कारण है। इसलिए, फोसिल ईंधन के उपयोग को कम करना और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देना जरूरी है।
जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याएं
- जल संकट: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की मात्रा और वितरण में अस्तव्यस्तता होती है, जिससे कुछ क्षेत्रों में सूखा और कुछ में बाढ़ जैसी आपदाएं आती हैं। इससे जल संसाधनों की कमी होती है, जो पीने के पानी, कृषि, उद्योग, बिजली उत्पादन और पर्यावरण के लिए आवश्यक हैं।
- खाद्य सुरक्षा: जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट होती है, क्योंकि फसलों को तापमान, वर्षा, जलाव, जमीन, कीट-पतंगों और रोगों के प्रति संवेदनशीलता होती है। इससे खाद्य सुरक्षा में खतरा बढ़ता है, जो भूखमरी, गरीबी, आर्थिक अस्थिरता और सामाजिक अशांति का कारण बन सकता है।
- स्वास्थ्य प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इससे गर्मी की लहरें, बाढ़, सूखा, आग, तूफान, धूल भरी हवाएं, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जलवायु संबंधी रोगों का प्रसार, आदि जैसी घटनाएं बढ़ती हैं। इससे लोगों को गंभीर बीमारियां, चोटें, अक्षमता, तनाव, और मौत का सामना करना पड़ता है।
- पर्यावरणीय नुकसान: जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण को भी बहुत नुकसान होता है, क्योंकि इससे वनों का नष्ट, जैव विविधता का क्षय, महासागरों का अम्लीकरण, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्री स्तर में वृद्धि, जमीन की सतह का धंसना, आदि जैसे परिवर्तन होते हैं। इससे पर्यावरण की संरचना, कार्य, और सेवाओं में बदलाव आते हैं, जो मानव जीवन के लिए अनुकूल नहीं होते हैं।
- अगर हम अपनी गतिविधियों को नहीं बदलते, तो क्लाइमेट चेंज का प्रभाव और भी गंभीर हो सकता है। इसलिए, हमें अपनी ऊर्जा की खपत को कम करने, नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करने, वृक्षारोपण करने, और पर्यावरण की रक्षा करने की जरूरत है।
जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण में अंतर
प्रदूषण का मतलब है कि वातावरण में अनावश्यक और हानिकारक पदार्थ मिल जाते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करते हैं। प्रदूषण के कई प्रकार हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण आदि।
क्लाइमेट चेंज का मतलब है कि पृथ्वी के औसत तापमान में लंबे समय तक बदलाव होता है, जो मौसम, जलवायु, बारिश, बर्फ, समुद्री स्तर और जैव विविधता को प्रभावित करता है। क्लाइमेट चेंज का मुख्य कारण है ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है, जो हमारे द्वारा जलाए जाने वाले फॉसिल ईंधन से निकलते हैं।
प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, क्योंकि वे अक्सर एक ही स्रोतों से उत्पन्न होते हैं, और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, वायु प्रदूषण में काला कार्बन एक ऐसा पदार्थ है, जो न केवल हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि क्लाइमेट चेंज को भी तेज़ करता है, क्योंकि यह धूप की किरणों को अवशोषित करता है, और धरती को गर्म करता है।
प्रदूषण और क्लाइमेट चेंज को कम करने के लिए, हमें अपनी ऊर्जा की खपत को कम करने, नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करने, वृक्षारोपण करने, और पर्यावरण की रक्षा करने की जरूरत है।
जलवायु परिवर्तन को रोकने के उपाय
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हमें जलवायु परिवर्तन के बुरे परिणामों से बचना हैं तो हमें अपने क्रिया-कलापों पर ध्यान देते हुए तापमान वृद्धि के कारकों को नियंत्रित करने के बारे में ठोस कदम उठाने होंगे।
यदि इस तापमान वृद्धि को रोकना है, तो हमें फॉसिल ईंधन के उपयोग को कम करना होगा और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए हमें 2015 में पेरिस में हुए जलवायु सम्मेलन समझौते का पालन करना होगा, जो पेरिस में हुए सम्मेलन में तय किया गया था। 2015 पेरिस समझौते को आप विस्तार से पढ़ सकते है।